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Showing posts from November, 2018

पवित्र अथर्ववेद में सृष्टि रचना का प्रमाण

 अथर्ववेद काण्ड नं.  4  अनुवाक नं.  1  मंत्रा नं.  1  :- ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्त्ताद् वि सीमतः सुरुचो वेन आवः। स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः।।  1।। ब्रह्मµजµज्ञानम्µप्रथमम्µपुरस्त्तात्µविसिमतःµसुरुचःµवेनःµआवःµसःµ बुध्न्याः µउपमाµअस्यµविष्ठाःµसतःµचµयोनिम्µअसतःµचµवि वः अनुवाद :- (प्रथमम्) प्राचीन अर्थात् सनातन (ब्रह्म) परमात्मा ने (ज) प्रकट होकर (ज्ञानम्) अपनी सूझ-बूझ से (पुरस्त्तात्) शिखर में अर्थात् सतलोक आदि को (सुरुचः) स्वइच्छा से बड़े चाव से स्वप्रकाशित (विसिमतः) सीमा रहित अर्थात् विशाल सीमा वाले भिन्न लोकों को उस (वेनः) जुलाहे ने ताने अर्थात् कपड़े की तरह बुनकर (आवः) सुरक्षित किया (च) तथा (सः) वह पूर्ण ब्रह्म ही सर्व रचना करता है (अस्य) इसलिए उसी (बुध्न्याः) मूल मालिक ने (योनिम्) मूलस्थान सत्यलोक की रचना की है (अस्य) इस के (उपमा) सदृश अर्थात् मिलते जुलते (सतः) अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म के लोक कुछ स्थाई (च) तथा (असतः) क्षर पुरुष के अस्थाई लोक आदि (वि वः) आवास स्थान भिन्न (विष्ठाः) स्थापित किए। भावार्थ :- पवित्रा ...

Kabir is god नानक जी का संक्षिप्त यथार्थ परिचय

आदरणीय श्री नानक साहेब जी प्रभु कबीर(धाणक) जुलाहा के साक्षी - श्री नानक देव का जन्म विक्रमी संवत्  1526  (सन्  1469) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दू परिवार में श्री कालु राम मेहत्ता (खत्रा) के घर माता श्रीमती तृप्ता देवी की पवित्रा कोख (गर्भ) से पश्चिमी पाकिस्त्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ। इन्होंने फारसी, पंजाबी, संस्कृत भाषा पढ़ी हुई थी। श्रीमद् भगवत गीता जी को श्री बृजलाल पांडे से पढ़ा करते थे। श्री नानक देव जी के श्री चन्द तथा लखमी चन्द दो लड़के थे। श्री नानक जी अपनी बहन नानकी की सुसराल शहर सुल्तान पुर में अपने बहनोई श्री जयराम जी की कृपा से सुल्तान पुर के नवाब के यहाँ मोदी खाने की नौकरी किया करते थे। प्रभु में असीम प्रेम था क्योंकि यह पुण्यात्मा युगों-युगों से पवित्रा भक्ति ब्रह्म भगवान(काल) की करते हुए आ रहे थे। सत्ययुग में यही नानक जी राजा अम्ब्रीष थे तथा ब्रह्म भक्ति विष्णु जी को इष्ट मानकर किया करते थे। दुर्वासा जैसे महान तपस्वी भी इनके दरबार में हार मानकर क्षमा याचना करके गए थे। त्रोता युग में श्री नानक जी की आत्मा राजा जनक विदेही बने। जो सीता...

“पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर् देव) जी की अमृतवाणी में सृष्टि रचना

  Kabir is god विशेष :- निम्न अमृतवाणी सन्  1403  से {जब पूज्य कविर्देव (कबीर परमेश्वर) लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हुए} सन्  1518  {जब कविर्देव (कबीर परमेश्वर) मगहर स्थान से सशरीर सतलोक गए} के बीच में लगभग  600  वर्ष पूर्व परम पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) जी द्वारा अपने निजी सेवक (दास भक्त) आदरणीय धर्मदास साहेब जी को सुनाई थी तथा धनी धर्मदास साहेब जी ने लिपिबद्ध की थी। परन्तु उस समय के पवित्रा हिन्दुओं तथा पवित्रा मुस्लमानों के नादान गुरुओं (नीम-हकीमों) ने कहा कि यह धाणक (जुलाहा) कबीर झूठा है। किसी भी सद् ग्रन्थ में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी के माता-पिता का नाम नहीं है तथा ये तीनों प्रभु अविनाशी है। इनका जन्म मृत्यु कभी नहीं होता न ही पवित्रा वेदों व पवित्रा कुआर्न शरीफ आदि में कबीर परमेश्वर का प्रमाण है। कहते थे कि सर्वशास्त्रों में परमात्मा तो निराकार लिखा है। भोली आत्माओं ने उन विचक्षणों (चतुर) गुरुओं पर विश्वास कर लिया कि सचमुच यह कबीर धाणक तो अशिक्षित है तथा गुरु जी शिक्षित हैं, सत्य कह रहे होंगे। आज वही सच्चाई प्रकाश म...