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इस साल नया 2019

हैपी न्यू ईयर, हैपी दिवाली, हैपी बर्थडे, गुड मॉर्निंग/अफटरनून/नाईट वगैरह क्यों नहीं बोलना चाहिए? आइये आध्यात्मिक तरीके से इसे समझते हैं :- सतयुग, द्वापर, त्रेता में हमारे पूर्वज नेक नियति से रहते थे और ज्यादातर परमात्मा से डरने वाले होते थे, इसलिए जो भी भक्ती विधि उन्हें उनके गुरुओं द्वारा बताई जाती थी, वो उस विधि अनुसार तन-मन-धन से समय मिलते ही उसमे लगे रहते थे। क्षमा, दया, दान, विवेक, सत्यवादिता ये उस समय के लोगों के आम गुण थे। ॐ नाम तक की नि:स्वार्थ भक्ति करने के कारण उनमें जुबानी सिद्धि आ जाती थी। श्राप और आशिर्वाद ये उन्ही युगों से चली परम्परा है। वो अगर किसी बीमार के सर पे हाथ रख के ये भी कह देते थे, कि 'कोई बात नहीं, ठीक हो जायेगा', तो वो बीमार आदमी राहत महसूस करता था। और हम आज लगभग सभी गुणों से हीन हो चुके हैं। भक्ती की बात करते ही आजकल लोग चिढ़ते हैं, लेकिन परम्परा उन युगों की ढोह रहे हैं। वास्तविकता यह है कि, आज हमारे पास इस जन्म की भी भक्ती कमाई नहीं है। कई बार हम पिछले जन्मों की कमाई लेकर पैदा होते हैं और उस कमाई को भी हम किसी को गुड मॉर्निंग कह कर, आशिर्वाद दे कर ...