(सन्त रामपाल जी के सत्संग वचनों से उद्धृत) सत्ययुग उस समय को कहते हैं जिस युग में अधर्म नहीं होता। शांति होत है। पिता से पहले पुत्रा की मृत्यु नहीं होती, स्त्रा विधवा नहीं होती। रोग रहित शरीर होता हैं। सर्व मानव भक्ति करते हैं। परमात्मा से डरने वाले होते हैं क्योंकि वे आध्यात्मिक ज्ञान के सर्व कर्मों से परिचित होते हैं। मन, कर्म, वचन से किसी को पीड़ा नहीं देते तथा दुराचारी नहीं होते। जति-सति, स्त्रा पुरूष होते हैं। वृक्षों की अधिकता होती हैं। सर्व मनुष्य वेदों के आधार से भक्ति करते हैं। वर्तमान में कलयुग है। इसमें अधर्म बढ़ चुका है। कलयुग में मानव की भक्ति के प्रति आस्था कम हो जाती है या तो भक्ति करते ही नहीं यदि करते हैं तो शास्त्रा विधि त्याग कर मनमानी भक्ति करते हैं। जो श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23.24 में वर्जित हैं। जिस कारण से परमात्मा से जो लाभ वांछित होता है वह प्राप्त नहीं होता। इसलिए अधिकतर मनुष्य नास्तिक हो जाते हैं। धनी बनने के लिए रिश्वत, चोरी, डाके डालने को माध्यम बनाते हैं। परन्तु यह विधि धन लाभ की न होने के कारण परमात्मा के दोषी हो जाते हैं तथा ...