कबीर साहेब द्वारा मलूक दास जी को अपनी शरण में लेना। आज से लगभग 600 वर्ष पहले एक गांव में मलूकराम नाम का चौधरी रहता था। उस समय गाँव में डाकूओं का आतंक था। वे लोग धन के लिए किसी की भी हत्या कर दिया करते थे। जिस गाँव में मलूकराम नाम का चौधरी रहता था, उस गांव में कबीर साहेब जी हर सप्ताह घर-घर जाकर सत्संग किया करते थे और वहीं भंडारा करते थे। यह सब देख कर गाँव के 5-10 लोगों ने चौधरी मलूकराम को शिकायत किया कि एक कबीर नाम का ठग सत्संग के नाम पर गांव के लोगों को लूटता है और जिनके यहां सत्संग करता है, वहाँ तरह तरह के पकवान खाता है। यह सुनकर मलूकराम, कबीर साहेब को गाँव से निकालने के लिए सत्संग स्थल पर गया और वहाँ जाकर कबीर साहेब को काफी भला-बुरा कहा और कहा कि आप भोले भाले लोगों को लूटते हो, खुद काम करके अपना पेट नहीं भर सकते? कबीर साहेब ने जवाब दिया कि मेरा परमात्मा बैठे-बैठे ही मुझे खाना खिलाता है, हम तो बस भजन करते हैं। मलूकराम चौधरी ने कहा कि परमात्मा बैठे-बैठे हमें क्यों नहीं खिलाता तो कबीर साहेब ने कहा कि आपको परमात्मा पर विश्वास नहीं है। यह सुनकर चौधरी मलूक राम ने कबीर सा...