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प्रलय सात प्रकार की होती है

1. आन्शिक प्रलय    2 प्रकार की होती है.
2. महा प्रलय            3 प्रकार की होती है.
3. दिव्य महा प्रलय   3 प्रकार की होती है.

1.पहली आन्शिक प्रलय -
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 पहली आंशिक प्रलय कलयुग के अंत में 432000 साल बाद होती है.
          प्रत्येक कलयुग के अंत  में  ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) द्वारा  की जाती है, कलयुग के आखिरी चरण  में सभी मनुष्य नास्तिक होंते हैं,सभी मनुष्य का कद की  डेढ से दो फ़ुट , 5 वर्ष की लड़की बच्चे पैदा करेगी, मनुष्य की आयु 15 या 20 साल होगी,,सभी मनुष्य कच्चे मांस आहारी , धरती मे साढे तीन फुट तक उपजाऊ तत्व नही होगा, बड और पीपल के पेड़ पर पत्ते नही होंगे खाली ढूँढ होगी,रीछ (भालू) उस समय का सबसे अच्छी सवारी(वाहन) होगी , ओस की तरह बारिश होगी,ओस को चाटकर सभी जीव अपनी प्यास बुझायैंगे, लगभग सभी औरतें चरित्रहीन, धरती में लगातार भूकम्प आने से  प्रथ्वी रेल गाडी की तरह हिलेगी, कोई भी घर नही बनेगा, सभी मनुष्य चूहे की तरह बिल खोदकर रहेंगे. 

कलयुग के अंत समय में सतयुगी राजा हरिश्चंद्र की आतमा निहकलंक  नाम से जो अभी विष्णु लोक में है, धरती पर   विष्णु जी का दसवां अवतार के रूप में जन्म लेगा.जो और बहुत तगडा होगा, जिसकी तलवार 10 फुट की होगी,अपनी तलवार से सभी क्रतघ्नी मनुष्यों  को घास की तरह काटेगा. 

धरती पर गर्मी का हाहाकार होगा , अचानक बारिश होगी और धरती पर सैंकडो फ़ुट पानी चढ जायेगा, कुछ पुण्यकर्मी मनुष्य ऊंचे स्थानौं पर बचैन्गे.

 11 सूर्य और आएंगे और धरती का पूरा जल सुखाएंगे  , सैकडो बरसों मे पानी सूखेगा, धरती का उपजाऊपन फिर से आ जाएगा और आज जो पृथ्वी के दोहन प्रदूषण हो रहा है उसमें  बैलेंस हो जाएगा . धरती पर जंगल ही जंगल होगा, सदाबहार फल-फूलों से लथपथ पेड़ होंगे, जो लोग ऊँचे स्थानो पर बचे रह गये ,उनकी संतानैं शुद्ध वातावरण  होने से धीरे-धीरे सेंकडो फुट की हो जाती है, लाखौं साल की उम्र सतयुग में होती है. फिर धीरे-धीरे त्रेता,द्वापर,कलयुग मे खान-पान और वातावरण बिगडने से प्रलय की स्थिति बार-बार आती है.यह प्रलय ज्योति निरंजन (काल-ब्राह्म जो 21 ब्रह्मांड का मालिक है) द्वारा की जाती है.

2. दूसरी आन्शिक  प्रलय.
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             दूसरी आशिक प्रलय ब्रह्मा के 1 दिन के पश्चात होती है ब्रह्मा का 1 दिन 1008 चतुर्युग का होता है 
ब्राह्मा का एक दिन 1,008 चतुर्युग और 1,008 युग की रात्री होती है , 
नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर (72) चतुर्युग का होता है।
इंद्र की बीबी शची 14 ईन्द्रौं की बीबी बनती है, फ़िर ये सभी 14 ईन्द्र मर कर गधे बनते है और शची भी मर कर शची को गधी का जीवन प्राप्त होता है.
       1,008 चतुर्युग पश्चात  स्वर्ग (इंद्र का लोक) ,  पृथ्वी -पाताल लोक और ईनके सारे प्राणी  बिनाश में आ जाते है. काल- ब्रह्म इन सभी प्राणीयों को अचेत करके सूक्ष्म रुप में  अपने ईक्कीसवे ब्रह्मांड (ब्रह्म लोक) में गुप्त स्थान पर  रखता है , ब्रह्मा की एक रात्री (1,008 चतुर्युग) समाप्त होने पर  फ़िर से (पाताल - पृथ्वी-स्वर्ग में )  सृष्टिकर्म आरंभ  हो जाता है 
नोट-: इस प्रलय में ब्रह्मा- विष्णु- शंकर जी और  इनके लोक और इनमे रहने वाले प्राणी विनाश  में नही आते है.

दूसरी प्रलय 1,008 चतुर्युग बाद होती है, 

चार  युगो ( (चतुर्युग) की आयु  4  अरब लगभग है.

सतयुग की आयु    = 17,28,000  वर्ष
(17 लाख 28 हजार)
द्वापर युग की आयु = 12,96,000  वर्ष
(12 लाख 96 हज़ार)
त्रेता युग की आयु  =   8,64,000   वर्ष
(8 लाख 64 हज़ार)
कलयुग की आयु   =   4,32,000   वर्ष
(4 लाख 32 हज़ार)     
  
चार युगौं (चतुर्युग) 
की आयु  =                43,20,000  वर्ष
(43 लाख 20 हज़ार मानव वर्ष)

1,008 चतुर्युग की आयु
1 चतुर्युग की  आयु  43,20,000 × 1,008 चतुर्युग = 4,35,45,60,000  मानव वर्ष

(4 अरब 33 करोड़ 45 लाख 60 हजार मानव वर्ष अनुसार)

 महाप्रलय - तीन महाप्रलय होती है 

3. पहली महाप्रलय
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        पहली दिव्य महाप्रलय एक  एक ब्रह्मा का जीवन काल (महा कल्प)  अर्थात 100 वर्ष समाप्त होने पर ज्योतिनिरंजन (काल ब्रह्म) स्वयं करता है.

किस तरह  के ब्रह्मा के 100 वर्ष की आयु  है। गौर से नीचे देखिये.

ब्रह्मा का एक दिन = 1,008 (एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही 1,008 (एक हज़ार)चतुर्युग की रात्री।

दिन+रात = 2,016 (दो हजार सोलह) चतुर्युग।

इस प्रकार ब्रह्मा जी का एक दिन  और रात 2,016 चतुर्युग.

1 महीना = 30 गुणा 2,016 = 60,480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 गुणा 60,480 = 7,25,760चतुर्युग ।

ब्रह्मा जी की आयु -
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1 महीना = 30 × 2,016 = 60,480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 × 60,480 = 7,25,760चतुर्युग ।
7,25,760 × 100 =7,25,76,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग)=31,35,28,32,00,00,000   मानव वर्ष 

ब्राह्मा जी की आयु है.
(31 नील 33 खरब 28 अरब 32 लाख   मानव वर्ष अनुसार )

4. दूसरी  दिव्य महाप्रलय
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       दूसरी महाप्रलय सात (7) ब्रह्मा की मृत्यु के बाद एक विष्णु की मृत्यु होती है और सात (7) विष्णु की मृत्यु के बाद एक शिवजी की मृत्यु होती है. इस दूसरी  महाप्रलय को एक दिव्य महाकल्प  भी कहते हैं  इस महाप्रलय में एक ब्रह्मांड के ब्रह्मा-विष्णु-महेश और स्वर्ग ,पाताल और मृत्युलोक के सहित और उसमें सभी जीवो व रचना का विनाश हो जाता है,  इस दूसरी महाप्रलय में इस ब्रह्मांड में बने ब्रह्म लोक मे ब्रह्मलोकिय काल ब्रह्म और दुर्गा  तीन  रुप महाब्रह्मा-महासावित्री ,महाविष्णु-महालक्ष्मी,महाशिव-महापार्वती  मे यथावत रहते हैं और चौथी मुक्ति प्राप्त प्राणी जैसे मार्कंडेय ऋषि , रूमी ऋषि आदि इस ब्रह्मलोक में बने महास्वर्ग में रहते हैं जो नीचे के लोको और ब्रह्मा विष्णु महेश की दृष्टि से भी परे होते हैं.   इसीलिए नीचे के लोको के ऋषि इन्हें ब्रह्मलीन मान लेते हैं. 

      फिर नए दिव्य महाकल्प के प्रारंभ में कालब्रह्म और दुर्गा  ब्रह्मा विष्णु महेश की  की उत्पत्ती सहित नीचे के सभी ब्रह्मांडों की रचना करते हैं   और जवान होने पर ब्रह्मा को कमल के फूल पर विष्णु को क्षीर सागर में और शिव जी को कैलाश पर्वत पर विराजमान कर देते हैं  और सृष्टि रचने का आदेश देते हैं समय-समय पर आकाशवाणी करते हैं और स्वयं भी सृष्टि रचने में इनका मार्गदर्शन सहयोग गुप्त रूप में करते हैं , सृष्टि रचने  का वर्णन  पुराणों में जैसे विष्णु पुराण ,शिव पुराण , ब्रह्मपुराण ,सुख सागर ,महाभारत ,देवी भागवत महापुराण मे किया गया है और गीता जी के 14 अध्याय के 3 से 5  श्लोक में भी इसके वारे में कहा गया है.

5. तीसरी महाप्रलय
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  जब 70000  त्रिलोकीय तमोगुणी शिव यानी शिवजी की मृत्यु हो जाती है तब  एक ब्रहमांड में बने  ब्रह्मलोक के काल ब्रह्म और दुर्गा की और इसमें बनी रचना सहित इस एक ब्रमांड का समूल नाश हो जाता है . इसको अक्षर पुरुष का एक युग भी कहा गया है  इसके बारे में गीता अध्याय 8 के श्लोक 16 बताया है .

6.  प्रथम दिव्य महाप्रलय 
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  ब्रह्मलोकिय शिव  जब सौ बार मृत्यु को प्राप्त होता है  तब 4 महाब्रह्मांडों के   20 ब्रह्मांडों का समूल नाश हो जाता है तब काल ब्रह्म इन 20 ब्रह्मांडों के पुण्य कर्मी प्राणियों को अपने 21 वे ब्रह्मांड  में बने नकली सतलोक आदि स्थानों पर रखता है  तथा अन्य प्राणियों को उसी 21वे ब्रहमांड में बने 4 गुप्त स्थानों पर रख देता है , और  अपनी भूख मिटाने के लिए उसी नकली सतलोक से  जीवो को खाता है और फिर उनको उसी चार गुप्त स्थानों पर डाल देता है.  इन गुप्त स्थानों पर कालब्रह्म समय निर्धारित कर तीन रूप में महाब्रह्मा -महाविष्णु- महाशिव रूप में  जन्म मृत्यु की लीला करता रहता सौ बार जन्म लेता है और सौ बार मृत्यु को प्राप्त होता है  . इसके पश्चात काल ब्रह्म  20 ब्रहमांड में फिर से सृष्टि की रचना करता है

7. दूसरी दिव्य महाप्रलय 
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        प्रथम दिव्य महाप्रलय जब 5 बार हो जाती है तो काल ब्रह्म के 21 ब्रह्मांडों का समूल विनाश हो जाता है और काल ब्रह्म और दुर्गा का विनाश हो जाता है  तो यह दूसरी दिव्य महाप्रलय  होती है , यह दूसरी  दिव्य महाप्रलय परब्रह्म (अक्षर पुरुष)  के  एक युग के बाद होती है। ऐसे 1000 युग की परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का एक दिन  और इतने ही 1000 युग की एक रात्रि होती है .  इसके पश्चात  सत्य पुरुष की कृपा से अक्षर पुरुष  काल ब्रह्म और दुर्गा की उत्पत्ति  व 21 ब्रह्मांड की सभी रचनाएं करता  है .

 8.तीसरी दिव्य महाप्रलय
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        परब्रह्म का एक दिन  1000 युग का होता है 1000 युग की रात्रि होती है ,  ऐसे 30 दिन रात का महीना और 12 महीने का साल ऐसे १०० साल की उम्र परब्रह्म की होती है.  इसके बाद एक धूधूकार  शंख बजता है और अचिंत्य सत्पुरुष के आदेश से काल  के 21 ब्रह्मांड और अक्षर पुरुष की 7 शंख ब्रह्मांडों  का विनाश कर देता है और फिर से  सृष्टि होवेगी जो सत्य पुरुष ने पहले ही निर्धारित कर रखी है ,यह प्रलय बहुत समय बाद आवेगी .   परंतु सतलोक गए हंस दोबारा इन ब्रम्हांडो  में जन्म मरण में नहीं आएंगे.

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