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Showing posts from November, 2019

बुरे वक़्त में परमात्मा कैसे साथ रहते है

एक भक्त था वह परमात्मा को बहुत मानता था, बड़े प्रेम और भाव से उनकी सेवा किया करता था । एक दिन भगवान से कहने लगा – मैं आपकी इतनी भक्ति करता हूँ पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई । मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये की मुझे ये अनुभव हो की आप हो। भगवान ने कहा ठीक है, तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो, जब तुम रेत पर चलोगे तो तुम्हे दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देंगे । दो तुम्हारे पैर होंगे और दो पैरो के निशान मेरे होंगे । इस तरह तुम्हे मेरी अनुभूति होगी । अगले दिन वह सैर पर गया, जब वह रेत पर चलने लगा तो उसे अपने पैरों के साथ-साथ दो पैर और भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ । अब रोज ऐसा होने लगा । एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया, वह रोड़ पर आ गया उसके अपनो ने उसका साथ छोड दिया । देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है, मुसीबत में सब साथ छोड़ देते है । अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त में भगवान ने भी साथ छोड दिया। धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग ...

What is the importance of satsang

A saint used to teach Gita to his disciples every day.  All the disciples were happy with this but one disciple looked worried.  The saint asked him the reason for this.  The disciple said- Gurudev, I do not understand what you teach, I am worried and sad because of that.  Guru said- bring water in the basket carrying coal.  The disciple was surprised, how will the water fill the basket?  But since the Guru had given this order, he filled the river water in the basket and ran but to no avail.  Water trickled down from the basket and fell.  He filled water in the basket and ran to Guru Ji many times, but the water did not stick in the basket.  Then he went to his Gurudev and said - Gurudev, it is not possible to bring water in the basket, no use.  Guru said - there is benefit.  Look in the basket.  The pupil noticed - by immersing the coal basket in the water again and again, it has become clean.  His blackness has been wa...

देने वाला कौन

आज हमने भंडारे में भोजन करवाया। आज हमने ये बांटा, आज हमने वो दान किया... .  हम अक्सर ऐसा कहते और मानते हैं। इसी से सम्बंधित एक अविस्मरणीय कथा सुनिए... . एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था। . एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना। . कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला।  लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- "प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं। इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।" . समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा--- "ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।" . अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड...

शरीर के कमलों की यथार्थ जानकारी

कबीर सागर में अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ पृष्ठ 111 पर शरीर के कमलों की यथार्थ जानकारी है जो इस प्रकार हैः- 1) प्रथम मूल कमल है, देव गणेश है। चार पंखुड़ी का कमल है। 2) दूसरा स्वाद कमल है, देवता ब्रह्मा-सावित्राी हैं। छः पंखुड़ी का कमल है। 3) तीसरा नाभि कमल है, लक्ष्मी-विष्णु देवता हैं। आठ पंखुड़ी का कमल है। 4) चैथा हृदय कमल है, पार्वती-शिव देवता हैं। 12 पंखुड़ी का कमल है। 5) पाँचवां कंठ कमल है, अविद्या (दुर्गा) देवता है। 16 पंखुड़ी का कमल है। कबीर सागर में भवतारण बोध में पृष्ठ 57 पर लिखा है कि:- षट्कमल पंखुड़ी है तीनी। सरस्वती वास पुनः तहाँ किन्ही।। सप्तम् कमल त्रिकुटी तीरा। दोय दल मांही बसै दोई बीरा (शूरवीर)।। 6) यह छठा संगम कमल त्रिकुटी से पहले है जो सुष्मणा के दूसरे अंत वाले द्वार पर बना है। इसकी तीन पंखुड़ियाँ है। इसमें सरस्वती का निवास है। वास्तव में दुर्गा जी ही अन्य रूप में यहाँ रहती है। इसके साथ 72 करोड़ सुन्दर देवियाँ रहती हैं। इसकी तीन पंखुड़ियाँ हैं। इन तीनों में से एक में परमेश्वर का निवास है जो अन्य रूप में रहते हैं। एक पंखुड़ी में सरस्वती तथा 72 करोड़ देवियाँ जो ऊपर जाने...

गुरु के प्रति शिष्य का स्नेह व विचार अर्जन सर्जन से

कबीर परमात्मा जी के 64 लाख शिष्य थे जिनमे से अर्जुन- सुर्जन यह एक ऐसे नाम है । जिन का  गरीबदास जी महाराज के पूर्व जन्म(कबीर साहिब )में बहुत महत्वता है । यह बड़ी ही विलक्षण बात है की वह दो व्यक्ति जो  कबीर परमात्माजी के जीवन से लेकर महाराज गरीबदास के जीवन तक उपस्थित थे जबकि इन दोनों के जीवन काल में 260 वर्ष का अंतर है। परमात्मा कबीर साहिब जी ने अपने शिष्यों को एकत्रित करके कहा कि हम काशी के बाजारों में एक जलूस निकाल रहे है ।  उसी समय महाराज कबीर साहिब जी ने काशी में आपने शिष्यों की परीक्षा के लिए एक स्वांग रचा तथा शीशी में गंगाजल भरकर और वेश्या को साथ लेकर बाजार में निकल पड़े (यह प्रकरण आदि ग्रन्थ में विस्तार से लिखा है) बाकि सभी लेखकों ने इसे परमात्मा कबीर जी तक ही सीमित रखा है ।  केवल महाराज गरिबदास सम्प्रदा में भगवान कबीर जी के दोबारा जन्म लेने के बारे में पता चलता है। गरीबदासी सम्प्रदा के अनुसार जब परमात्मा कबीर साहिब ने यह सवांग रचा तो उनके साथ रविदास जी को भी ले गए । उस बक्त कबीर साहिब के 64लाख शिष्य थे जिन में अर्जुन- सुर्जन भी शामिल थे । जब हाथी पर बै...

राजा हरिश्चंद्र

राजा हरिश्चंद्र एक बहुत बड़े दानवीर थे। उनकी ये एक खास बात थी कि जब वो दान देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे।            ये बात सभी को अजीब लगती थी कि ये राजा कैसे दानवीर हैं। ये दान भी देते हैं और इन्हें शर्म भी आती है। ये बात जब तुलसीदासजी  तक पहुँची तो उन्होंने राजा को चार पंक्तियाँ लिख भेजीं जिसमें लिखा था ऐसी देनी देन जु                कित सीखे हो सेन। ज्यों ज्यों कर ऊँचौ करौ                 त्यों त्यों नीचे नैन।। इसका मतलब था कि राजा  तुम ऐसा दान देना कहाँ से सीखे हो? जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते हैं वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें तुम्हारे नैन नीचे क्यूँ झुक जाते हैं? राजा ने इसके बदले में जो जवाब दिया वो जवाब इतना गजब का था कि जिसने भी सुना वो राजा का कायल हो गया। इतना प्यारा जवाब आज तक किसी ने किसी को नहीं दिया। राजा ने जवाब में लिखा- देनहार कोई और है                 भेजत जो दिन ...

भजन करो उस रब का,जो दाता हैं कुल सब का.....

कबीर,अक्षर पुरूष वृक्ष का तना हैं,क्षर पुरूष वाकी डार त्रयदेवा शाखा भये,पात जानो संसार कबीर,हम ही अलख अल्लाह हैं,मूल रूप करतार अनन्त कोटि ब्रम्हांड का,मै ही सृजनहार * पवित्र श्रीमद् भागवत गीता जी का पवित्र ज्ञान * अध्याय 15 का श्लोक 1 (भगवान उवाच) ऊध्र्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्, छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित् अनुवाद: (उर्ध्वमूलम्) ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला (अधःशाखम्) नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला (अव्ययम्) अविनाशी (अश्वत्थम्) विस्तारित पीपल का वृृक्ष है, (यस्य) जिसके (छन्दांसि) जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ व (पर्णानि) पत्ते (प्राहुः) कहे हैं (तम्) उस संसाररूप वृक्षको (यः) जो (वेद) इसे विस्तार से जानता है (सः) वह (वेदवित्) पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है। भावार्थ:- गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि अर्जुन पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को जानने वाले तत्वदर्शी संतों के पास जा कर उनसे विनम्रता...

कहत_कबीर

 माया मरी न मन मरा,  मर-मर गए शरीर।  आशा तृष्णा न मरी,  कह गए दास कबीर।। > इस दोहे में कबीर साहेब कहते हैं कि इंसान की इच्छाएं कभी नहीं मरती हैं, चाहे उसकी मृत्यु हो जाए। सुख पाने की आशाएं हमेशा हमारे मन में रहती हैं। पढिए निम्न रोचक कथा               एक आदमी राजा के पास गया कि वो बहुत गरीब है, उसके पास कुछ भी नहीं, उसे मदद चाहिए। राजा दयालु था.. उसने पूछा कि *"क्या मदद चाहिए..?"* आदमी ने कहा.."थोड़ा सा भूखंड"              राजा ने कहा, “कल सुबह सूर्योदय के समय तुम यहां आना, ज़मीन पर तुम दौड़ना जितनी दूर तक दौड़ पाओगे वो पूरा भूखंड तुम्हारा। परंतु ध्यान रहे, जहां से तुम दौड़ना शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा,  अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा...! आदमी खुश हो गया. . .🤩               सुबह हुई 🌞 सूर्योदय के साथ आदमी दौड़ने लगा 🏃 आदमी दौड़ता रहा.. दौड़ता रहा.. सूरज सिर पर चढ़ आया था पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था 🥴 वो हांफ...

किराये का घर

जब हम "किराए का मकान" लेते है तो "मकान मालिक" कुछ शर्तें रखता है ! 1. मकान का किराया समय पर देना होगा। 2. मकान में गंदगी नही फैलाना। 3. मकान मालिक जब चाहे मकान को खाली करवा सकता है !! उसी प्रकार परमात्मा जी (मालिक) ने भी हमें जब ये शरीर दिया था यही शर्ते हमारे लिये देकर भेजा हैः 1. किराया है। (भजन -सिमरन) 2. गन्दगी (बुरे विचार और बुरी भावनाये) नही फैलानी। 3. जब मर्जी होगी परमात्मा अपनी आत्मा को वापिस बुला लेगा !! मतलब ये है कि ये जीवन हमे बहुत थोड़े समय के लिए मिला है, इसे लड़ाई -झगड़े करके या द्वेष भावना रखकर नही, बल्कि प्रभु जी के नाम का सिमरन करते हुए बिताना चाहिए ! हे मेरे प्रभु जी !इतनी कृपा करना कि आपकी आज्ञा में रहे और भजन -सुमिरन करते रहे!!

प्रेरक_प्रसंग

एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई।  शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है। वह डर के मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई। वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था। उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम हुई थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस किचड़ के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा। दोनों भी करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फस गए। दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था। थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है? बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं। मेरा कोई मालिक नहीं। मैं खुद ही जंगल का मालिक हूं। बहुत शक्तिशाली हूँ। गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारे उस शक्ति क...

सभी की आँखें खोलने के लिए ये संदेश है

एक बार गुरु नानक देव जी एक नगर को गए। वहाँ सारे नगर वासी इकठे हो गए। वहाँ एक महिला भक्त श्री गुरु नानक देव जी से कहने लगी- महाराज! मैंने तो सुना है, आप सभी के दुःख दूर करते हो। मेरे भी दुःख दूर करो, मैं बहुत दुखी हूँ। मैं तो आप के गुरुद्वारे में रोज 50 रोटी अपने घर से बना कर बाँटती हूँ, फिर भी दुखी हूँ। ऐसा क्यों ? गुरु नानक देव जी ने कहा- कि तू दुसरों का दुःख अपने घर लाती हो, इस लिए दुखी हो। वो कहने लगी - महाराज! मुझे कुछ समझ नहीं आया, मुझ अज्ञानी को ज्ञान दो। गुरु नानक देव जी कहने लगे- तूं 50 रोटी गुरु द्वारे में बांटती तो हो... पर बदले में क्या ले जाती हो ? वो कहने लगी- सिर्फ आप के लंगर के सिवा और कुछ भी नहीं। (लंगर में बंट रही प्रसाद)  गुरु नानक देव जी कहने लगे- लंगर का मतलब है एक रोटी खाना ओर अपने गुरु का शुकर मनाना। पर तूं तो रोज बड़ी-बड़ी थैलियों में दाल मखनी , मटर पनीर, रायता, खीर और 10-15 रोटी भर-भर के ले जाती हो। तीन दिन वो लंगर तेरे घर में रहता है। तू अपने घर में सभी परिवार को वो खिलाती हो।  तू नहीं जानती कि भगवान और गुरु घर के लंगर...

एक चुप सौ सुख

एक मछलीमार काँटा डालकर तालाब के किनारे बैठा था ! काफी समय बाद भी कोई मछली काँटे में नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई , तो वह सोचने लगा... कहीं ऐसा तो नहीं कि मैंने काँटा गलत जगह डाला है, यहाँ कोई मछली ही न हो ! उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके काँटे के आसपास तो बहुत-सी मछलियाँ थीं ! उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँसी क्यों नहीं ? एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा , तो उससे कहा ~ लगता है भैया ! यहाँ पर मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो ! अब इस तालाब की मछलियाँ काँटे में नहीं फँसतीं मछलीमार ने हैरत से पूछा ~ क्यों ... ऐसा क्या है यहाँ ? राहगीर बोला ~ पिछले दिनों तालाब के किनारे एक बहुत बड़े संत ठहरे थे ! उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर प्रवचन दिया था ! उनकी वाणी में इतना तेज था कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी बड़े ध्यान से सुनती ! यह उनके प्रवचनों का ही असर है , कि उसके बाद जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए काँटा डालकर बैठता है , तो ये मौन धारण कर लेती हैं ! जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं , तो काँटे में फँसेगी कैसे ? इसलिए ... बेहतर यहीं होगा कि, आप कहीं और जाकर क...

ज्ञानसूत्र

एक युवक ने विवाह के दो साल बाद परदेस जाकर व्यापार करने की इच्छा पिता से कही । पिता ने स्वीकृति दी तो वह अपनी गर्भवती पत्नी को माँ-बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार करने चला गया । परदेश में मेहनत से बहुत धन कमाया और वह धनी सेठ बन गया । सत्रह वर्ष धन कमाने में बीत गए तो सन्तुष्टि हुई और वापस घर लौटने की इच्छा हुई । पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी और जहाज में बैठ गया । उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था । सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नही है । मैं यहाँ ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर कोई लेने को तैयार नहीं है । सेठ ने सोचा 'इस देश में मैने बहुत धन कमाया है, और यह मेरी कर्मभूमि है, इसका मान रखना चाहिए !' उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई । उस व्यक्ति ने कहा- मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है । सेठ को सौदा तो महंगा लग रहा था.. लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 स्वर्ण मुद्राएं दे दी । व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया- कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रूककर सोच लेना । सेठ ने सूत्र अपनी किताब म...

-🌺🌺🌺 #विनम्रता 🌺🌺🌺---

*एक बार नदी को अपने पानी के*         *प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया*               *नदी को लगा कि ...*           *मुझमें इतनी ताकत है कि मैं*    *पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि*       *सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ*   एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अंदाज में           समुद्र से कहा ~ बताओ !        मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या लाऊँ ?         मकान, पशु, मानव, वृक्ष            जो तुम चाहो, उसे ...    मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ.             *समुद्र समझ गया कि ...*         *नदी को अहंकार हो गया है*             *उसने नदी से कहा ~*              *यदि तुम मेरे लिए*         *कुछ लाना ही चाह...

परमेश्वर अपने भगतो की किस प्रकार मदद करता है

एक सदना नाम का कसाईँ था जो अपनी आजीविका के लिऐँ एक कसाईँ की दुकान पर बकरेँ काटनेँ का काम किया करता था इक दिन सदना कसाईँ को कबीर साहिँब जी मिलेँ सदना कसाईँ ने कबीर साहिँब का सतसंग सुना सदना सतसंग सुनकर बहुत प्रभावित हुआ ।सतसंग सुनकर सदना कसाईँ को अपने बुरेँ कर्म का ज्ञान हुआ। सदना नेँ अपने कल्याण के लिऐँ कबीर जी सेँ नाम दिक्षा देने कि याचना कि कि गुरु देँव क्या मुझ पापी का भी उधार हो सकता है जी मैँ कसाईँ हुँ जी कसाईँ सदना नाम मेरा।तब कबीर जी ने कहा कि सदना नौँका मेँ चाहेँ घास रखो ,चाहे पत्थर वो पार कर दियाकरती हैँ भाईँ कल्याण हो जाऐगा पर आगे ऐसे कर्म नहीँ करना ,सदना नेँ कहा गुरुदेँव कैसे छोँड़ू इस कसाईँ के काम को मेरे पास कोई और काम नही ।नहीँ तो बालक भूखे मर जावेँगे।गुरुदेँव नेँ कहा सदना यो दोनो बात कैसे हो,मर्याँदा तो निभानी पड़ेगी यदि कल्याण चाहतेँ हो । तब सदना बहुत विनती करता है कि गुरुदेँव उधार करो ।तब कबीर जी ने सदना की लगन देँख कर कहा की ठीक है वचन दो की कितने बकरेँ हर रोज काटोँगे । सदना ने सोचा कि10 या बीस काटता हुँ और ज्यादा काटनेँ का बचन करता हुँ और बोला 100 बकरेँ काटने का वचन दे...