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1. श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु और श्री शिव जी के माता पिता कौन हैं? अब तक सभी ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को अविनाशी ही जाना है जो कि पीढी दर पीढी सुनी सुनायी जानकारी के आधार पर पवित्र ग्रंथों को ठीक से ना समझ पाने के कारण हुआ है । संत रामपाल जी ने श्रीमद्भगवद् गीता और श्रीमद् देवी भागवत पुराण (दुर्गा पुराण) में प्रमाण दिखाकर सिद्ध किया है कि माँ दुर्गा,  ब्रह्मा, विष्णु और शिव / शंकर की माँ हैं। और ज्योति निरंजन / क्षर पुरुष / काल  उनके पिता हैं। सृष्टि रचना में परमात्मा कबीर जी  ने जो ज्ञान दिया है उसमें स्पष्ट रूप से ब्रह्मा, विष्णु और शिव के जन्म का विस्तार से वर्णन किया गया है जिसका प्रमाण कबीर सागर में उपलब्ध है। संत रामपाल जी ने उस ज्ञान  को भी प्रमाण के साथ स्पष्ट किया है। जिसकी सम्पूर्ण जानकारी के लिए पाठक सृष्टी रचना पढ़कर अधिक जान सकते हैं। *2. शेरांवाली माता दुर्गा (अष्टांगी) का पति कौन है?* इसमें कोई संदेह नहीं है कि देवी दुर्गा ब्रह्मा, विष्णु और शिव की माँ हैं। लेकिन इसके बाद भी ये रहस्य बना रहा कि माँ दुर्गा का पति कौन है? संत रामपाल जी ने इस रहस्...
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पूर्ण मोक्ष साधन पूर्ण मोक्ष प्राप्ति के लिए उपदेश मंत्र साधना ( नाम दान) पूर्ण परमात्मा ही पूजा के योग्य है। शास्त्र विधि अनुसार पूजा अति उत्तम है। शास्त्रानुकूल पूजा से ही पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति अर्थात सतलोक गमन सम्भव है। तीन मंत्रोें के नाम का जाप करने से ही पूर्ण मोक्ष होता है। सतगुरु अर्थात् तत्वदर्शी सन्त द्वारा अपने अधिकारी शिष्य को उसकी भक्ति एवं दृढता के स्तर के अनुसार तीन प्रकार के मंत्रों (नाम दान) क्रमशः तीन बार उपदेश करने सेे समस्त पाप कर्म कटते हैं। कबीर सागर में अमर मूल बोध सागर पृष्ठ 265 - तब  कबीर  अस कहेवे लीन्हा,ज्ञानभेद सकल कह दीन्हा ।। धर्मदास   मैं  कहो   बिचारी, जिहिते निबहै सब संसारी ।। प्रथमहि शिष्य  होय जो आई, ता कहैं पान देहु तुम भाई ।।1।। जब देखहु तुम  दृढ़ता  ज्ञाना, ता  कहैं  कहु शब्द प्रवाना ।।2।। शब्द मांहि जब निश्चय आवै, ता कहैं ज्ञान अगाध सुनावै ।।3।। दोबारा फिर समझाया है - बालक   सम  जाकर  है  ज्ञाना । तासों  कहहू  वचन  ...
किसी राजा के पास एक बकरा था । एक बार उसने एलान किया की जो कोई इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा। किंतु बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा। इस एलान को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास आकर कहने लगा कि बकरा चराना कोई बड़ी बात नहीं है। वह बकरे को लेकर जंगल में गया और सारे दिन उसे घास चराता रहा,, शाम तक उसने बकरे को खूब घास खिलाई और फिर सोचा की सारे दिन इसने इतनी घास खाई है अब तो इसका पेट भर गया होगा तो अब इसको राजा के पास ले चलूँ,, बकरे के साथ वह राजा के पास गया,, राजा ने थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने रखी तो बकरा उसे खाने लगा। इस पर राजा ने उस मनुष्य से कहा की तूने उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना वह घास क्यों खाने लगता। बहुत जनो ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न किया किंतु ज्यों ही दरबार में उसके सामने घास डाली जाती तो वह फिर से खाने लगता। एक विद्वान वियक्ति ने सोचा इस एलान का कोई तो रहस्य है, तत्व है,, मैं युक्ति से काम लूँगा,, वह बकरे को चराने के लिए ले गया। जब भी बकरा घास खाने के लिए जाता तो वह उसे लकड़ी से मारता,, सारे दिन ...

||| परमात्मा मार-मार के खीर भी खिलाते है |||

कबीर साहेब द्वारा मलूक दास जी को अपनी शरण में लेना।   आज से लगभग 600 वर्ष पहले एक गांव में मलूकराम नाम का चौधरी रहता था। उस समय गाँव में डाकूओं का आतंक था। वे लोग धन के लिए किसी की भी हत्या कर दिया करते थे। जिस गाँव में मलूकराम नाम का चौधरी रहता था, उस गांव में कबीर साहेब जी हर सप्ताह घर-घर जाकर सत्संग किया करते थे और वहीं भंडारा करते थे। यह सब देख कर गाँव के 5-10 लोगों ने चौधरी मलूकराम को शिकायत किया कि एक कबीर नाम का ठग सत्संग के नाम पर गांव के लोगों को लूटता है और जिनके यहां सत्संग करता है, वहाँ तरह तरह के पकवान खाता है। यह सुनकर मलूकराम, कबीर साहेब को गाँव से निकालने के लिए सत्संग स्थल पर गया और वहाँ जाकर कबीर साहेब को काफी भला-बुरा कहा और कहा कि आप भोले भाले लोगों को लूटते हो, खुद काम करके अपना पेट नहीं भर सकते? कबीर साहेब ने जवाब दिया कि मेरा परमात्मा बैठे-बैठे ही मुझे खाना खिलाता है, हम तो बस भजन करते हैं। मलूकराम चौधरी ने कहा कि परमात्मा बैठे-बैठे हमें क्यों नहीं खिलाता तो कबीर साहेब ने कहा कि आपको परमात्मा पर विश्वास नहीं है।  यह सुनकर चौधरी मलूक राम ने कबीर सा...

ऋषि मुनिंदर और नल-नील की कथा [कहानी]

लाखो साल पहले त्रेता युग मे एक मुनीन्द्र नाम के ऋषि  थे। वो अपने आश्रम में रहते थे व घूम घूम कर लोगो को भगवान की कथा  सुनाते व भगति करने की सलाह देते। उनके आशीर्वाद से लोगो को बहुत से रोगों से छुटकारा मिलता व एक सुखपूर्ण जीवन का आधार मिलता। यहां तक कि श्रीरामचंद्र जी ,लंकापति रावण, हनुमान जी भी ऋषि मुनीन्द्र  जी के संपर्क में आये। व उनके अटके काम भी ऋषि मुनीन्द्र जी की कृपा से ही ठीक हुए। ऋषि मुनीन्द्र [Munndra Rishi] जी द्वारा नल व नील का भयंकर रोग सही करना। नल व नील नाम के दो भाई थे ।उनको एक भयंकर रोग था ।जिसके इलाज के लिए वो सब जगह गए लेकिन  कोई भी ठीक न कर सका। उनका रोग निवारण मुनीन्द्र ऋषि जी के आशीर्वाद से हुआ। दोनों भाई मुनीन्द्र ऋषि के आश्रम में रहने लगे और वहां आने वाले भगतो की सेवा करने लगे।उनके कपड़े बर्तन आदि नदी में ले जाकर धो लाते। दोनों भाई बहुत ही भोले भाले थे ।वे दोनों भाई नदी में कपड़ो को भिगो देते व बातें करने लग जाते। जब वो बातें करते तो कुछ कपड़े पानी मे बह जाते। इससे जिन लोगो के कपड़े गुम होते उन्हें बहुत परेशानी आती।उन्होंने यह शिकायत मुनीन्...

‘‘नामदेव जी के लिए कबीर साहेब जी ने मंदिर घुमाया’

शादी के गीत और मंदिर की घंटियां आकर्षित बहुत करती हैं। वही व्यक्ति इनसे बच सकता है जो तत्वज्ञान पर दृढ़ता से लगा हुआ हो। मंदिर में आरती चल रही थी। पंडितजन हाथों में घंटियाँ तथा खड़ताल लेकर बजा रहे थे। गाँव पुण्डरपुर में बिठ्ठल भगवान का मंदिर था। उसमें सुबह तथा शाम को आरती होती थी। उस समय छूआछात चरम पर थी। एक दिन नामदेव जी मंदिर के पास से बने रास्ते पर जा रहे थे। नामदेव जी को भी धुन चढ़ गई। उसने अपनी जूतियाँ हाथों में लीं और उनको एक-दूसरे से मारने लगा और मंदिर में पहुँच गया। पंडितों के बीच से भगवान बिठ्ठल जी की मूर्ति के सामने खड़ा हो गया। पंडितों ने देखा कि नामदेव ने जूतियाँ हाथ में ले रखी हैं और मंदिर में प्रवेश कर गया है। ऐसा करने से मंदिर अपवित्र हो गया है। भगवान बिठ्ठल रूष्ट हो गए तो अनर्थ हो जाएगा। (विचार कीजिए मूर्ति रूष्ट कैसे होगी) नामदेव जी को खीचकर (घसीटकर) मंदिर के पीछे डाल दिया गया। भक्ति का आलम यह था कि भक्त नामदेव जी पृथ्वी पर गिरे-गिरे भी जूतियाँ पीट रहे थे और आरती गा रहे थे। उसी क्षण मंदिर का मुख नामदेव जी की ओर घूम गया। पंडितजन मंदिर के पीछे खड़े-खड़े घंटियाँ बजा रहे...

‘‘रंका-बंका की झोपड़ी में जब लगी आग ’’

बेटी अवंका झोंपड़ी के बाहर एक चारपाई पर बैठी थी। अचानक झोंपड़ी में आग लग गई। सर्व सामान जलकर राख हो गया। रंका तथा बंका दोनों पति-पत्नी गुरू जी (कबीर साहेब जी) के सत्संग में गए हुए थे जो कुछ दूरी पर किसी भक्त के घर पर चल रहा था।  अवंका दौड़ी-दौड़ी सत्संग में गई। गुरू जी प्रवचन कर रहे थे। अवंका ने कहा कि माँ! झोंपड़ी में आग लग गई। सब जलकर राख हो गया। सब श्रोताओं का ध्यान अवंका की बातों की ओर गया। माँ बंका जी ने पूछा कि बेटी क्या बचा है? अवंका ने बताया कि केवल एक खटिया बची है जिस पर मैं बाहर बैठी थी। माँ बंका ने कहा कि बेटी जा, उस खाट को भी उसी आग में डाल दे और आकर सत्संग सुन ले। कुछ जलने को रहेगा ही नहीं तो सत्संग में भंग ही नहीं पड़ेगा। बेटी सत्संग हमारा धन है। यदि यह जल गया तो अपना सर्वनाश हो जाएगा। लड़की वापिस गई और उस चारपाई को उठाया और उसी झोंपड़ी की आग में डालकर आ गई और सत्संग में बैठ गई। सत्संग के पश्चात् अपने ठिकाने पर गए। वहाँ एक वृक्ष था। उसके नीचे वह सामान जो जला नहीं था जैसे बर्तन, घड़ा आदि-आदि पड़े थे। उस वृक्ष के नीचे बैठकर भजन करने लगे। उनको पता नहीं चला कि कब सो गय...