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‘‘नामदेव जी के लिए कबीर साहेब जी ने मंदिर घुमाया’

शादी के गीत और मंदिर की घंटियां आकर्षित बहुत करती हैं। वही व्यक्ति इनसे बच सकता है जो तत्वज्ञान पर दृढ़ता से लगा हुआ हो।
मंदिर में आरती चल रही थी। पंडितजन हाथों में घंटियाँ तथा खड़ताल लेकर बजा रहे थे। गाँव पुण्डरपुर में बिठ्ठल भगवान का मंदिर था। उसमें सुबह तथा शाम को आरती होती थी। उस समय छूआछात चरम पर थी। एक दिन नामदेव जी मंदिर के पास से बने रास्ते पर जा रहे थे। नामदेव जी को भी धुन चढ़ गई। उसने अपनी जूतियाँ हाथों में लीं और उनको एक-दूसरे से मारने लगा और मंदिर में पहुँच गया। पंडितों के बीच से भगवान बिठ्ठल जी की मूर्ति के सामने खड़ा हो गया। पंडितों ने देखा कि नामदेव ने जूतियाँ हाथ में ले रखी हैं और मंदिर में प्रवेश कर गया है। ऐसा करने से मंदिर अपवित्र हो गया है। भगवान बिठ्ठल रूष्ट हो गए तो अनर्थ हो जाएगा। (विचार कीजिए मूर्ति रूष्ट कैसे होगी) नामदेव जी को खीचकर (घसीटकर) मंदिर के पीछे डाल दिया गया। भक्ति का आलम यह था कि भक्त नामदेव जी पृथ्वी पर गिरे-गिरे भी जूतियाँ पीट रहे थे और आरती गा रहे थे। उसी क्षण मंदिर का मुख नामदेव जी की ओर घूम गया। पंडितजन मंदिर के पीछे खड़े-खड़े घंटियाँ बजा रहे थे। करिश्मा देखकर घंटियाँ बजाना बंद करके स्तब्ध रह गए। उस मंदिर का मुख सदा उस ओर रहा। गाँव तथा दूर देश के व्यक्ति भी यह चमत्कार देखने आए थे। 

उसके तीन दिन बाद...
एक दिन नामदेव भक्त रंका जी की झोंपड़ी पर गया। उनकी लड़की अवंका घर पर अकेली थी। माता-पिता लकड़ी लाने जंगल में गए हुए थे। लड़की अवंका औषधि घिस रही थी। नामदेव ने पूछा कि बहन जी! यह औषधि किसके लिए बना रही हो? भक्तमति अवंका ने कहा कि नामदेव! आप गुरूदेव को अधिक कष्ट ना दो। गुरू जी के हाथों को चोट लगी है। भाई उस दिन आपको क्या पड़ी थी मंदिर में जाने की? आपकी भक्ति की रक्षा करने के लिए, आपकी इज्जत रखने के लिए गुरू जी ने उस मंदिर को घुमाया था। जिस कारण से गुरू जी के हाथों को चोट लगी है। उनके लिए यह पट्टी तैयार कर रही हूँ। तीन दिन हो गए हैं। मैं पट्टी बाँधकर आती हूँ। नामदेव! गुरू जी को मत सता। यह कहकर अवंकाजी की आँखें भर आईं। नामदेव को विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि किसी ने गुरू जी को वहाँ नहीं देखा था, न नामदेव जी ने गुरू जी को वहाँ देखा। नामदेव जी भी अवंका जी के साथ गुरू जी के आश्रम में गए। देखा तो वास्तव में गुरू जी के दोनों हाथ जख्मी थे। नामदेव जी ने समझ रखा था कि उस दिन उस देवल (देवालय यानि मंदिर) को बिठ्ठल (विष्णु) जी ने घुमाया था। अपनी आँखों देखकर भी नामदेव जी की शंका समाप्त नहीं हुई। उसने पूछा कि हे गुरूदेव! आपके हाथों को क्या लगा है? गुरू जी ने कहा कि नामदेव! बेटी अवंका ने बताया था। उस पर विश्वास नहीं हुआ। ले तेरी एक जूती मैं उठाकर लाया था। नामदेव जी की एक जूती वहाँ गुम हो गई थी। बहुत खोजने पर भी नहीं मिली थी। नामदेव जी तुरंत परमेश्वर के चरणों में गिर गए और आगे से कभी किसी मंदिर में न जाने की प्रतिज्ञा की और समर्पित होकर मर्यादा में रहकर भक्ति करने लगे। इससे पहले परमेश्वर कबीर जी ने नामदेव को केवल ‘ओम’ नाम का जाप करने को दे रखा था। नामदेव जी भी पहले इसी नाम का जाप किया करते थे। उसका कोई लाभ नहीं होना था। उससे पहले भी नामदेव जी ओम् नाम का जाप बिना गुरू बनाए किया करते थे। 

कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान। 
गुरू बिन दोनों निष्फल है, पूछो वेद पुराण।। 

फिर नामदेव जी को दूसरा  गुप्त मंत्र दिया था जिसका आविष्कार केवल परमेश्वर कबीर जी ही करते थे। अन्य को इस मंत्र का ज्ञान नहीं था। इसकी गवाही ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 95 मंत्र 1 भी देता है। लिखा है कि ‘‘परमेश्वर पृथ्वी पर प्रकट होकर विचरण करके अपनी वाक (वाणी) द्वारा भक्ति की प्रेरणा करता है। भक्ति के गुप्त मंत्रों का आविष्कार करता है।’’
संत गरीबदास जी को भी परमेश्वर कबीर जी एक सतगुरू रूप में जिंदा बाबा के रूप में मिले थे। जो यह अमृतवाणी आज हमें प्राप्त है, यह परमेश्वर जी की ही देन है। संत गरीबदास जी का ज्ञानयोग तथा दिव्य दृष्टि परमेश्वर कबीर जी ने खोल दी थी। जिस कारण से संत गरीबदास जी को भूत तथा भविष्य की घटनाओं का यथार्थ ज्ञान था। उन्होंने कहा था कि :-

गरीब, नामा छीपा ओम तारी, पीछे सोहं भेद बिचारी। 
सार शब्द पाया जब लोई, आवागमन बहुर ना होई।।

सतगुरू से सतनाम और सारनाम प्राप्त करने वाला साधक यदि मर्यादा में रहकर आजीवन सतभक्ति करता है तो जन्म मृत्यु के चक्रव्यूह से सदा के लिए आज़ाद हो जाता है।

गरीब, जैसे सूरज के आगे बदरा, ऐसे कर्म छया रे। 
प्रेम की पवन करे चित मंजन, झलकै तेज नया रे।। 

 भावार्थ :- सत्य साधना शास्त्रोक्त विधि से करने से परमात्मा के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है। सुमरन (स्मरण-जाप) करते समय या परमेश्वर की महिमा सुनने तथा परमात्मा का विचार आने पर प्रभु प्रेम में आँसू बहने लगते हैं जो पाप कर्म नाश होने का प्रतीक होता है जैसे तेज वायु चलने से बादल तितर-बितर हो जाते हैं, सूर्य का प्रकाश स्पष्ट नया ताजा दिखाई देने लगता है। इसी प्रकार नाम जाप से उत्पन्न प्रेम की आँधी से आत्मा तथा परमात्मा के सामने से पाप कर्म रूपी बादल तितर-बितर हो जाते हैं। फिर परमेश्वर जी दिव्य दृष्टि से दिखाई देते हैं। उनका नूर (प्रकाश) पहले अगोचर था। फिर दिव्य दृष्टिगोचर हुआ। उसी परमेश्वर की भक्ति से पूर्ण निर्बाण (पूर्ण मोक्ष) प्राप्त होता है। वह परमात्मा (मौला) सत्यधाम (सत्यलोक) में रहता है।

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