*भिख मांगने का अजीब तरीका।*
✍
जब इंसान दरिद्रता,अपंगता-विकलांगता से ग्रस्त होकर गरीबी की चरम सीमा पर पहुँचा तो भिख मांगकर पेट भरना उसकी मजबुरी बन गई।
हालाकी कुछ लोगो ने तो भिख और भिखारियो को ही व्यापार बना लिया है। मासुम दरिद्र बच्चो तथा लाचार, बेघर महिलाओ से बर्बरता पुर्वक भिख मंगवाकर बदले मे उनके सामने एक वक्त का रुखा सुखा खाना पशु सरिखा रख दिया जाता है और दिनभर की भिख में आई सारी कमाई हड़प ली जाती है।
रोड़ किनारे या किसी मंदिर के बाहर बैठे भिखारीयो की दुखभरी कहानी तो अपने आप ही जन्म लेती है लेकिन सोसाइटी मे बैठे उच्च वर्ग के भिखारियो की भी अपनी एक अलग ही पहचान है।
आखिर इनकी भी अपनी कोई इज्जत है जो भिख मांगने के बावजुद बरकरार है।
इन प्रोफेशनली लोगो के भिख मांगने का तरीका और सलिखा बड़ा ही सराहनीय है।
जिसे अब मध्यम वर्ग के लोगो ने भी अपनाना शुरु कर दिया है, सेठ, साहुकार, व्यापारी, और सक्षम किसान भिख मांगने का यह हुनर हाई सोसाइटी मे बैठे अमीरो से सिखकर अमल भी करने लगे है।
उच्च वर्गीय भिखारीयो के कई सारे बंगले है, किसी की एक फैक्ट्री है तो किसी की अनेको..।
फिर भी इन महान विभुतीयो का भिख मांगने का तरीका बड़ा ही अजीबो-गरीब है, इनके पास पार्टी-सार्टी करने के लिए हजारो रुपये पाँकेट में हमेशा पड़े रहेंगे, घर के सामने फोर व्हीलर,
यहा तक की बेंक मे करोड़ो रुपये भी जँमा है यह लोग अपने बेटे की शादी पर लड़की वालो से भिख मांगते है।
सामने वाली पार्टी अगर मजबुत है तो सौदा पट भी जाता है लेकिन बाद मे "तेरे बाप ने दहेज कम दिया" कहकर जीवनभर लड़की को तल्लीन किया जाता है।
यही बात मध्यम वर्ग पर लागु होती है अगर लड़की का गरीब पिता भिख देने में सक्षम ना हो तो रिश्ता ठुकरा दिया जाता है।
इन उंचे लोगो ने भिख को एक और नाम भी दिया है जिससे इनको खुलेआम भिख मांगने मे शर्म से निचा भी नही देखना पढ़ता और भिख भी मिल जाती है, हालाकी भिख के इस उपनाम को भी यह लोग खुलकर हर किसी के सामने नही बता सकते उसके पिछे भी बातुनी षड़यंत्र काम करता है, भिख उर्फ "दहेज" यही वो भिख है जिसके अभाव मे बहु की हत्या तक कर दी जाती है या फिर उसे इतना प्रताड़ित किया जाता है की वह आत्महत्या कर लेती है। लेकिन इन सबके बिच एक दरिद्र पिता जो मजदुरी के बलबुते दो वक्त का खाना भी मुश्किल से जुटा पाता है इस दहेज रुपी जाल मे बुरी तरह फंस चुंका है।
अमीर बाप कहता है मै तो अपनी बेटी को दहेज दुंगा ही दुंगा, और गरीब सोचता है की बेटी हाथ कैसे पिले करु क्योकि अगर यह शुभ कार्य अगर मात्र किसी "रश्म" से ही पुरा हो जाता तो किसी भी गरीब बाप को बेटी बोझ नही लगती और ना ही भ्रुण हत्याए होती।
आमिर लोगो के कारण ही एक गरीब पिता को भी व्यर्थ खर्च करना पड़ता है क्योकि कहते है ना दुनिया का सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग।
गरीब पिता की बेटी अपनी अमीर सहेली की शादी देखकर खुली आंखो सपने देखती है और उन्ही सपनो को साकार करने के लिए एक गरीब पिता ब्याज पर पैसे उठाकर बेटी की महत्वकांक्षाए पुरी करता है और बदले मे मिलता है जीवन भर के कर्ज का बोझ।
फिर इस कर्ज को नही चुका पाने पर पिता आत्महत्या भी कर लेता है।
जिस बेटी को जन्म दिया, उसे पढ़ा लिखाकर लायक बनाया, उसे दुलार किया और "मेरी बेटी को अच्छा सुसराल मिले" कहकर भगवान से मिन्नते भी की, तो फिर एक पिता यह कैसे भुल जाता है की उसकी अपनी बेटी की तरह ही उसकी बहु भी किसी की बेटी है आखिर क्या कमी है उस बेटी मे जिसे तुम दहेज के लालची लोग पैसे से तोलते हो, क्या तुम्हारी बेटी कोई ऐसी वस्तु है जिसे सामाजिक बाजार मे बेचने निकले हो, या फिर बेटी को दहेज नही दोगे तो तुम्हारी बेटी की किमत कम हो जायेगी ? सोसायटी मे, एक तरफ तो मान सम्मान और सराफत दिखाकर कहते हो लाखो मै एक है मेरी बेटी, सुशील, सालीन, और संस्कारी है मेरी बेटी, और दुसरी तरफ उसे दहेज रुपी शादी के लाल जोड़े मे लपेट कर लालची समधी और जवाई को सौप देते हो, उसे कुरिति के हाथो बेचते हो, आज तुम अपनी बेटी का सौदा करते हो सोचो की जब तुम्हारी बेटी की शादी मे सामने वाली पार्टी लाखो रुपये मांग रही है तो फिर जिसकी बेटी तुम्हारे घर बहु बनकर आ रही है उससे तुम क्यो लाखो रुपये मांगते हो क्या वह किसी की बेटी नही।
वाह रे भिखारीयो, गर्व है तुम पर पुरी कायनात को जिसमे तुम जैसे दहेज के लालची भिखारीयो ने विशेष बल दिखलाया और भिख मांगने की परंपरा को कायम रखा, तुम्हारे इसी तरह भिख मांगने के तरिके को देखकर बेचारे गरीब लोग रोज आत्महत्याए करेंगे क्योकि उनके भितर उपजी यह दहेज रुपी कुरिति और लोकलाज को तुम अमीरो ने ही जन्म दिया है।
जिस तरह समाज परंपराए बनाता है उसी तरह समाज खुद भी इन परंपराओ को तोड़ सकता है और समाज को एक नई दिशा देकर हमेशा के लिए दहेज जैसी कुरिति को जड़ से उखाड़ कर हर गरीब बेटी और हर गरीब पिता को हमेशा के लिए सुखी किया जा सकता है। संत रामपालजी महाराज ने वही तो किया है आज वर्तमान मे ऐसी हजारो शादिया होती है जिसमे ना तो दहेज लिया जाता है और ना ही दहेज दिया जाता है क्यो ना हम सब मिलकर इस नेक सोच के साथ, इस नेक इरादे के साथ, दहेज रुपी राक्षस को मारने की अर्थात दहेज परंपरा को जड़ से उखाड़ फैंकने की इस नेक मुहीम मे संत रामपालजी महाराज को सहयोग करे ताकि फिर किसी पिता को बेटी बोझ ना लगे, फिर कभी कोई बेटी ससुराल से प्रताड़ित होकर आत्हत्या ना करे।
भाई बहनो वर्तमान मे संत रामपालजी महाराज ही पुरी धरती पर एकमात्र ऐसे संत है जिन्होने इस दहेज रुपी रुड़ीवादिता को देश से ही खत्म करने का सकंल्प लिया है तो क्यो ना हम सब भी इसमे सहयोग करके अपने पुण्य कर्म बना ले।
Comments
Post a Comment