कबीर परमात्मा जी के 64 लाख शिष्य थे जिनमे से अर्जुन- सुर्जन यह एक ऐसे नाम है । जिन का गरीबदास जी महाराज के पूर्व जन्म(कबीर साहिब )में बहुत महत्वता है । यह बड़ी ही विलक्षण बात है की वह दो व्यक्ति जो कबीर परमात्माजी के जीवन से लेकर महाराज गरीबदास के जीवन तक उपस्थित थे जबकि इन दोनों के जीवन काल में 260 वर्ष का अंतर है।
परमात्मा कबीर साहिब जी ने अपने शिष्यों को एकत्रित करके कहा कि हम काशी के बाजारों में एक जलूस निकाल रहे है ।
उसी समय महाराज कबीर साहिब जी ने काशी में आपने शिष्यों की परीक्षा के लिए एक स्वांग रचा तथा शीशी में गंगाजल भरकर और वेश्या को साथ लेकर बाजार में निकल पड़े (यह प्रकरण आदि ग्रन्थ में विस्तार से लिखा है) बाकि सभी लेखकों ने इसे परमात्मा कबीर जी तक ही सीमित रखा है ।
केवल महाराज गरिबदास सम्प्रदा में भगवान कबीर जी के दोबारा जन्म लेने के बारे में पता चलता है। गरीबदासी सम्प्रदा के अनुसार जब परमात्मा कबीर साहिब ने यह सवांग रचा तो उनके साथ रविदास जी को भी ले गए । उस बक्त कबीर साहिब के 64लाख शिष्य थे जिन में अर्जुन- सुर्जन भी शामिल थे ।
जब हाथी पर बैठे कबीर जी ,भक्त रविदास जी और बीच में वेश्या को बैठा लिया । कबीर जी ने अपने हाथ में गंगा जल से भरी बोतल पकड़ राखी थी तथा ताकि शराब जैसी लगे शराबियो कि तरह बोलने लग पड़े जिस समय यह दृश्य उनके शिष्यों ने देखा तो सरे हैरान हो गए तथा मन में गलत ख्याल तथा नफरत आ गई । इस दृष्टान्त को जगत महाराज गरीबदास जी ने अपनी अमर्त वाणी में इस तरह कहा है
तारी बाजी पूरी में ,भरष्ट जुल्ह्दी नीच
गरीबदास गणिका सजी ,दहूं संत के बीच
गावत बैन विलास-पद ,गंगा जल पीवतं
गरीबदास विहल भये मतवाले घुमंत
भड़ुवा भड़ुवा सब कहें,कोई न जानें खोज
गरीबदास कबीर कर्म ,बाटंत सिर का बोझ
लोग तरह तरह से पागल ,मुर्ख तथा अपशब्द कहने लगे । कोई खोज न कर सका बल्कि लोग मुर्ख बन गए । सारी काशी नगरी निंदा करने लग गई । परमात्मा कबीर साहिब तथा भक्त रविदास जी दोनों की लोग तरह-तरह से निदा करने लगे । इसी तरह कबीर साहिब जी के शिष्य भी कबीर जी से नफ़रत करने लगे तथा दूर चले गए ।
केवल दो ही शिष्य सफल हुए तथा सतगुरु जी के पीछे-पीछे पहुंचे । कबीर साहिब जी घूमते-घूमते चांडाली चौक में पहुँच कर वहा बैठ गए । इस पर अर्जुन- सुर्जन को अच्छा नहीं लगा तथा कबीर साहेब जी से कहने लगे "महाराज इस जगह पर मत बैठो क्योकि यह चंडाल की जगह है" तथा यहाँ पर आप बैठे शोभामान नहीं होते । इस सचित्रण को महाराज गरीबदास जी ने यु कहा है
गरीब चंडाली के चौक में ,सतगुरु बैठे जाय
चौसठ लाख गारत गये,दो रहे सतगुरु पाय
गरीब सुरजन अर्जुन ठाहरे, सतगुरु की प्रतीत
सतगुरु ईहा न बैठिये यौह द्वारा है नीच
उस कबीर परमात्मा जी की लीला के आगे शिष्य की क्या हिम्मत की वेह उसे समझ सके सभी की तो क्या वे दोनों भी अपनी जगह कायम न रह सके वे भी परमात्मा कबीर साहिब जी को शिक्षा देने लग गए । कबीर परमात्मा को उँच-नीच से क्या आत्मा तो इस उँच-नीच से ऊपर है तथा उसके लिए कुछ भी बुरा नहीं है । जगत गुरु आचार्य गरीबदास जी ने अपनी वाणी में इस तरह कहा है
गरीब ऊँच नीच में हम रहें , हाड चाम की देह
सुरजन अर्जुन समझियों ,रखियों शब्द सनेह
कबीर साहिब जी ने फ़रमाया की यह तो हाड चाम की देह है पर हम तो आत्मास्वरूप है । उसके लिए ऊँच नीच नहीं होती उसका तो भगवान से मिलाप होता है । यदि आपने भी भगवान से मिलाप करना है तो शब्द सनेह मतलब जो नाम मिला है उसका जिप करो...
जब अर्जुन सर्जुन भक्त होकर अपने गुरु जी को शिक्षा देने लगे तो कबीर परमात्मा जी ने साफ साफ शब्दों में कह दिया कि मैं तुम्हें अपने इस शरीर से मोक्ष नहीं दूंगा तुम्हें मोक्ष के लिए अभी और इंतजार करना होगा कबीर परमात्मा ने अर्जुन सर्जुन को गरीब दास जी महाराज के बारे में बता कर गए जब मेरा संत आएगा उनसे नाम देना उसके बाद तुम्हारा मोक्ष होगा वही हुआ अर्जुन सर्जुन ने महाराज गरीबदास जी से नाम दीक्षा ली तत्पश्चात उनका मोक्ष हुआ
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो
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परमात्मा कबीर साहिब जी ने अपने शिष्यों को एकत्रित करके कहा कि हम काशी के बाजारों में एक जलूस निकाल रहे है ।
उसी समय महाराज कबीर साहिब जी ने काशी में आपने शिष्यों की परीक्षा के लिए एक स्वांग रचा तथा शीशी में गंगाजल भरकर और वेश्या को साथ लेकर बाजार में निकल पड़े (यह प्रकरण आदि ग्रन्थ में विस्तार से लिखा है) बाकि सभी लेखकों ने इसे परमात्मा कबीर जी तक ही सीमित रखा है ।
केवल महाराज गरिबदास सम्प्रदा में भगवान कबीर जी के दोबारा जन्म लेने के बारे में पता चलता है। गरीबदासी सम्प्रदा के अनुसार जब परमात्मा कबीर साहिब ने यह सवांग रचा तो उनके साथ रविदास जी को भी ले गए । उस बक्त कबीर साहिब के 64लाख शिष्य थे जिन में अर्जुन- सुर्जन भी शामिल थे ।
जब हाथी पर बैठे कबीर जी ,भक्त रविदास जी और बीच में वेश्या को बैठा लिया । कबीर जी ने अपने हाथ में गंगा जल से भरी बोतल पकड़ राखी थी तथा ताकि शराब जैसी लगे शराबियो कि तरह बोलने लग पड़े जिस समय यह दृश्य उनके शिष्यों ने देखा तो सरे हैरान हो गए तथा मन में गलत ख्याल तथा नफरत आ गई । इस दृष्टान्त को जगत महाराज गरीबदास जी ने अपनी अमर्त वाणी में इस तरह कहा है
तारी बाजी पूरी में ,भरष्ट जुल्ह्दी नीच
गरीबदास गणिका सजी ,दहूं संत के बीच
गावत बैन विलास-पद ,गंगा जल पीवतं
गरीबदास विहल भये मतवाले घुमंत
भड़ुवा भड़ुवा सब कहें,कोई न जानें खोज
गरीबदास कबीर कर्म ,बाटंत सिर का बोझ
लोग तरह तरह से पागल ,मुर्ख तथा अपशब्द कहने लगे । कोई खोज न कर सका बल्कि लोग मुर्ख बन गए । सारी काशी नगरी निंदा करने लग गई । परमात्मा कबीर साहिब तथा भक्त रविदास जी दोनों की लोग तरह-तरह से निदा करने लगे । इसी तरह कबीर साहिब जी के शिष्य भी कबीर जी से नफ़रत करने लगे तथा दूर चले गए ।
केवल दो ही शिष्य सफल हुए तथा सतगुरु जी के पीछे-पीछे पहुंचे । कबीर साहिब जी घूमते-घूमते चांडाली चौक में पहुँच कर वहा बैठ गए । इस पर अर्जुन- सुर्जन को अच्छा नहीं लगा तथा कबीर साहेब जी से कहने लगे "महाराज इस जगह पर मत बैठो क्योकि यह चंडाल की जगह है" तथा यहाँ पर आप बैठे शोभामान नहीं होते । इस सचित्रण को महाराज गरीबदास जी ने यु कहा है
गरीब चंडाली के चौक में ,सतगुरु बैठे जाय
चौसठ लाख गारत गये,दो रहे सतगुरु पाय
गरीब सुरजन अर्जुन ठाहरे, सतगुरु की प्रतीत
सतगुरु ईहा न बैठिये यौह द्वारा है नीच
उस कबीर परमात्मा जी की लीला के आगे शिष्य की क्या हिम्मत की वेह उसे समझ सके सभी की तो क्या वे दोनों भी अपनी जगह कायम न रह सके वे भी परमात्मा कबीर साहिब जी को शिक्षा देने लग गए । कबीर परमात्मा को उँच-नीच से क्या आत्मा तो इस उँच-नीच से ऊपर है तथा उसके लिए कुछ भी बुरा नहीं है । जगत गुरु आचार्य गरीबदास जी ने अपनी वाणी में इस तरह कहा है
गरीब ऊँच नीच में हम रहें , हाड चाम की देह
सुरजन अर्जुन समझियों ,रखियों शब्द सनेह
कबीर साहिब जी ने फ़रमाया की यह तो हाड चाम की देह है पर हम तो आत्मास्वरूप है । उसके लिए ऊँच नीच नहीं होती उसका तो भगवान से मिलाप होता है । यदि आपने भी भगवान से मिलाप करना है तो शब्द सनेह मतलब जो नाम मिला है उसका जिप करो...
जब अर्जुन सर्जुन भक्त होकर अपने गुरु जी को शिक्षा देने लगे तो कबीर परमात्मा जी ने साफ साफ शब्दों में कह दिया कि मैं तुम्हें अपने इस शरीर से मोक्ष नहीं दूंगा तुम्हें मोक्ष के लिए अभी और इंतजार करना होगा कबीर परमात्मा ने अर्जुन सर्जुन को गरीब दास जी महाराज के बारे में बता कर गए जब मेरा संत आएगा उनसे नाम देना उसके बाद तुम्हारा मोक्ष होगा वही हुआ अर्जुन सर्जुन ने महाराज गरीबदास जी से नाम दीक्षा ली तत्पश्चात उनका मोक्ष हुआ
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Sat saheb ji
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