1. श्री धर्मदास जी बनिया जाति से थे जो बाँधवगढ़ (मध्य प्रदेश) के रहने वाले बहुत धनी व्यक्ति थे। उनको भक्ति की प्रेरणा बचपन से ही थी। जिस कारण से एक रुपदास नाम के वैष्णव सन्त को गुरु धारण कर रखा था। हिन्दू धर्म में जन्म होने के कारण सन्त रुपदास जी श्री धर्मदास जी को राम कृष्ण, विष्णु तथा शंकर जी की भक्ति करने को कहते थे। एकादशी का व्रत, तीर्थों पर भ्रमण करना, श्राद्ध कर्म, पिण्डोदक क्रिया सब करने की राय दे रखी थी। गुरु रुपदास जी द्वारा बताई सर्व साधना श्री धर्मदास जी पूरी आस्था के साथ किया करते थे। गुरु रुपदास जी की आज्ञा लेकर धर्मदास जी मथुरा नगरी में तीर्थ-दर्शन तथा स्नान करने तथा गिरीराज (गोवर्धन) पर्वत की परिक्रमा करने के लिए गए थे। परम अक्षर ब्रह्म स्वयं मथुरा में प्रकट हुए। एक जिन्दा महात्मा की वेशभूषा में धर्मदास जी को मिले। श्री धर्मदास जी ने उस तीर्थ तालाब में स्नान किया जिसमें श्री कृष्ण जी बाल्यकाल में स्नान किया करते थे। फिर उसी जल से एक लोटा भरकर लाये। भगवान श्री कृष्ण जी की पीतल की मूर्ति (सालिग्राम) के चरणों पर डालकर दूसरे बर्तन में डालकर चरणामृत बनाकर पीया। फिर सालिग्रा...