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Showing posts from October, 2018

Who is god ‘सन्त धर्मदास जी से प्रथम बार परमेश्वर कबीर जी का साक्षात्कार’’

1. श्री धर्मदास जी बनिया जाति से थे जो बाँधवगढ़ (मध्य प्रदेश) के रहने वाले बहुत धनी व्यक्ति थे। उनको भक्ति की प्रेरणा बचपन से ही थी। जिस कारण से एक रुपदास नाम के वैष्णव सन्त को गुरु धारण कर रखा था। हिन्दू धर्म में जन्म होने के कारण सन्त रुपदास जी श्री धर्मदास जी को राम कृष्ण, विष्णु तथा शंकर जी की भक्ति करने को कहते थे। एकादशी का व्रत, तीर्थों पर भ्रमण करना, श्राद्ध कर्म, पिण्डोदक क्रिया सब करने की राय दे रखी थी। गुरु रुपदास जी द्वारा बताई सर्व साधना श्री धर्मदास जी पूरी आस्था के साथ किया करते थे। गुरु रुपदास जी की आज्ञा लेकर धर्मदास जी मथुरा नगरी में तीर्थ-दर्शन तथा स्नान करने तथा गिरीराज (गोवर्धन) पर्वत की परिक्रमा करने के लिए गए थे। परम अक्षर ब्रह्म स्वयं मथुरा में प्रकट हुए। एक जिन्दा महात्मा की वेशभूषा में धर्मदास जी को मिले। श्री धर्मदास जी ने उस तीर्थ तालाब में स्नान किया जिसमें श्री कृष्ण जी बाल्यकाल में स्नान किया करते थे। फिर उसी जल से एक लोटा भरकर लाये। भगवान श्री कृष्ण जी की पीतल की मूर्ति (सालिग्राम) के चरणों पर डालकर दूसरे बर्तन में डालकर चरणामृत बनाकर पीया। फिर सालिग्रा...

ज्ञान का दीपक

 में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा, ‘गुरुवर, शिक्षा का निचोड़ क्या है?’ संत ने मुस्करा कर कहा, ‘एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।’ बात आई और गई। कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा, ‘वत्स, इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।’ शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा, ‘क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?’ शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, कमरे में सांप है।’ संत ने कहा, ‘यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना। सांप होगा तो भाग जाएगा।’ शिष्य दोबारा कमरे में गया। उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गया और संत से बोला, ‘सांप वहां से जा नहीं रहा है।’ संत ने कहा, ‘इस बार दीपक लेकर जाओ। सांप होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।’ शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहां सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था। बाहर आकर शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, वहां सांप नहीं रस्स...

नकली नामों से मुक्ति नहीं

 55 एक सुशिक्षित सभ्य व्यक्ति मेरे पास आया। वह उच्च अधिकारी भी था तथा किसी अमुक पंथ व संत से नाम भी ले रखा था व प्रचार भी करता था वह मेरे (संत रामपाल दास) से धार्मिक चर्चा करने लगा। उसने बताया कि ‘‘मैंने अमूक संत से नाम ले रखा है, बहुत साधना करता हूँ। उसने कहा मुझे पाँच नामों का मन्त्रा (उपदेश) प्राप्त है जो काल से मुक्त कर देगा।‘‘ मैंने (रामपाल दास ने) पूछा कौन-2  से नाम हैं। वह भक्त बोला यह नाम किसी को नहीं बताने होते। उस समय मेरे पास बहुत से हमारे कबीर साहिब के यथार्थ ज्ञान प्राप्त भक्त जन भी बैठे थे जो पहले नाना पंथों से नाम उपदेशी थे। परंतु सच्चाई का पता लगने पर उस पंथ को त्याग कर इस दास (रामपाल दास) से नाम लेकर अपने भाग्य की सराहना कर रहे थे कि ठीक समय पर काल के जाल से निकल आए। पूरे परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) को पाने का सही मार्ग मिल गया। नहीं तो अपनी गलत साधना वश काल के मुख में चले जाते। उन्हीं भक्तों में से एक ने कहा कि मैं भी पहले उसी पंथ से नाम उपदेशी (नामदानी) था। यही पाँच नाम मैंने भी ले रखे थे परंतु वे पाँचों नाम काल साधना के हैं, सतपुरुष प्राप्ति के नहीं हैं। वे पा...

Il सतगुरु कहते हैं कबीर भक्ति ऐसे करनी चाहिय ll

         गुरुदेव सत्संग मे बताते हैं कि पहले एक अनल नाम का पक्षी होता था जो अब लुप्त हो चुका है वो पक्षी आकाश मे बहुत उपर उड़ता रहता था वो आकाश मे अपना अंडा ऐसी जगह देता था जहा नीचे केले का बाग होता था अंडा आकाश से सीधा केले के पोधो पर गिरता था ओर फुट जाता था लेकिन अंडा केले के पोधो पर गिरने के कारण बच्चे को कोई हानि नहीं होती थी अब अनल पक्षी का बच्चा ओर पक्षियों के साथ पृथ्वी पर रह कर अपना भरण पोषण करता है लेकिन उसका ध्यान आकाश मे अपने माता पिता मे रहता है उसे मालूम होता है कि यहा तेरा घर तेरे मा बाप नहीं है तेरे माता पिता तो आकाश मे है इसलिए वह अनल पक्षी का बच्चा एक पल भी अपने माता पिता को नहीं भूलता ओर जब वह बड़ा हो जाता है यानी उड़ने लायक हो जाता है तो वह इतना ताकतवर होता है कि अपने पंजों से हाथियों के झुंड से चार हाथियों  को अपने माता पिता के आहार के लिए उठा कर अपने माता पिता के पास उपर आकाश मे चला जाता है  इसीलिए गरीब दास जी कहते हैं कि अलल पंख अनुराग है सुन मंडल रहे थिर l दास गरीब  उधारीया  सतगुरु मिले कबीर ll जिस प्र...

।। यज्ञों का लाभ केवल सांसारिक सुविधाएँ, मुक्ति नहीं।।

   अध्याय 3  के श्लोक  10  में कहा है कि प्रजापति ने कल्प के प्रारम्भ में कहा था कि सब प्रजा यज्ञ करें। इससे तुम्हें सांसारिक भोग प्राप्त होंगे, न कि मुक्ति। इसका जीवित प्रमाण है कि यज्ञों से सांसारिक भोगों व स्वर्ग प्राप्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं।  क्ष्यज्ञ भी आवश्यक हैं जैसे गेहूँ का बीज जमीन में बीजने के पश्चात् उसको सिंचाई के लिए जल तथा पोषण के लिए खाद की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार परमात्मा की भक्ति के लिए नाम मंत्रा रूपी बीज आत्मा में डालने के पश्चात् उसमें यज्ञों (पाँचों यज्ञों = धर्म यज्ञ, हवन यज्ञ, ध्यान यज्ञ, प्रणाम यज्ञ, ज्ञान यज्ञ) रूपी जल व खाद की आवश्यकता होती है। परंतु पूर्ण गुरु से नाम ले कर गुरु मर्यादा में रहते हुए अंतिम समय तक अनन्य मन से नाम जाप (अभ्यास योग) करता रहे वह साधक अंत में अपने इष्ट लोक में चला जाता है तथा जब तक संसार में रहता है, उसको यज्ञों के फल रूप में संसारिक सुविधाऐं भी अधिक मिलती रहती हैं। वही यज्ञों में प्रतिष्ठित इष्ट (पूर्ण परमात्मा) ही मन इच्छित यज्ञों का फल देता है। प्रमाण के लिए गीता जी के अध्याय  3 ...

।। शास्त्रा विधि रहित पूजा अर्थात् मनमाना आचरण का विवरण।।

 अध्याय  3  के श्लोक  3  से  8  में भगवान ने कहा है कि हे निष्पाप!  (अर्जुन) इस लोक में ज्ञानी तो ज्ञान को श्रेष्ठ मानते हैं तथा योगी कर्म योग को फिर भी ऐसा कोई नहीं है जो कर्म किए बिना बचे। निष्कर्मता नहीं बन सकती और कर्म त्यागने मात्रा से भी उद्देश्य प्राप्त नहीं हो सकता। अध्याय  3  श्लोक  4  में निष्कर्मता का भावार्थ है कि जैसे किसी व्यक्ति ने एक एकड़ गेहूँ की पक्की हुई फसल काटनी है तो उसे काटना प्रारम्भ करके ही फसल काटने वाला कार्य पूरा किया जाएगा तब कार्य शेष नहीं रहेगा इस प्रकार कार्य पूरा होने से ही निष्कर्मता प्राप्त होती है। ठीक इसी प्रकार शास्त्रा विधि अनुसार भक्ति कर्म प्रारम्भ करने से ही परमात्मा प्राप्ति रूपी कार्य पूरा होगा। फिर निष्कर्मता बनेगी। कोई कार्य शेष नहीं रहेगा। यदि भक्ति कर्म नहीं करेगें तो यह त्रिगुण माया (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) बलपूर्वक अन्य व्यर्थ के कार्यों में लगाएगी। चूंकि स्वभाव वश माया (प्रकृति) से उत्पन्न तीनों गुण (रज-ब्रह्मा, सत-विष्णु, तम-शिव) जीव से जबरदस्ती कर्म करवाते...

भविष्यवाणी ‘‘कुछ संकेत भविष्यवाणी से’’

  अंजली  गाड़गिल  नामक  श्रीमति  ने  आध्यात्मिक  अभ्यास  करके  अपनी  दिव्य दृष्टि  विकसित  की।  फिर  उस  दिव्य  दृष्टि  से  सूक्ष्म  जगत  को  देखा  तथा  ब्रह्माण्ड  में  चल रही  गतिविधियों  का  वर्णन  एक  पुस्तक  में  लिखा।  भविष्य  में  होने  वाली  घटनाओं  का  दावे के  साथ  वर्णन  किया।  पहले  घट  चुकी  घटनाओं  का  विवरण  तथा  भविष्य  और  वर्तमान  में होने वाली तथा  आगे  हो रही  घटनाओं  का भी  वर्णन किया  है।  उसकी  सत्यता  को जाँचने के  लिए  एक  परम  पावन  डॉक्टर  अठावले  ने  अनुसंधान  किया  और  भविष्यवाणी  को  सटीक बताया। इन्होनें ‘‘आध्यात्मिक विज्ञान रिसर्च  फाउन्डेषन’’  संस्था  भी  बना  र...

कबीर परमेश्वर एक अच्छे भगत के लक्षण बताते हुए कहते हैं

एक भक्त में एक शूरवीर जैसा गुण होना चाहिए क्योकि शूरवीर में एक विशेष गुण होता है कि वह न तो अन्याय को सहता है और न ही युध्द के मैदान में अपने कदम पीछे हटाता है । ऐसे ही हमे भी अपने परमात्मा पर दृढ विश्वास रखकर मर्यादा मे रहकर भक्ति बनाये रखना चाहिये।मालिक ने 2033 से 3032 तक का समय सिर्फ हमारे लिये नही बल्कि पूरे विश्व के जीवों को पार करने के लिये चुना है ।हममें इतनी बुद्धि नही कि हम मालिक के खेलो को समझ सके। कबीर साहेब को 52 बार मौत की सजा दी गयी और अन्त समय पर परमात्मा कबीर साहेब ने दिखाया कि अन्त भला तो सब भला।तुम अपने सब जन्त्र मन्त्र कर लो या जो सोचा हो वो कर लो जंजीर मे बांधों गंगा मे डुबोयो या जो कुछ तुमने विचारा हो वह कर लो पर परमात्मा ने सारी लीला कर हमे सिखाया अन्त भला तो सब भला अन्त मे जो तुम्हारे वश का है ही नही वह काम समर्थ समय आने पर करेगा। कबीर सूरा के मैदान में क्या कायर का काम। कायर भागे पीठ देई सूरा करे संग्राम॥ कबीर सूरा के मैदान में कायर का क्या काम । सूरा सो सूरा मिलै तब पूरा संग्राम ॥ कबीर परमेश्वर इन दोहों के माध्यम से सभी जीवो को समझाते हुए कहते हैं कि वीरो...

श्राद्ध_अंधश्रद्धा_भगति

प्रश्न 1 श्राद्ध करना है या नहीं? उतर = श्राद्ध नहीं करना है । प्रश्न 2 क्यों नहीं करना है? उतर = क्योंकि श्राद्ध  करना शास्त्रों में मना किया है ? प्रश्न 3 प्रमाण कहा है ? उतर = श्री म...

सन्त रामपाल जी की उम्र की जानकारी के लिये ये जानकारी जरुर देखे जी

कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे…… ============================ ।।  इंद्र व सर्व प्रभुओं की आयु मानव वर्ष अनुसार।। इंद्र -                 31 करोड़ लगभग शची (14 इन्द...