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Showing posts from December, 2019

ऋषि मुनिंदर और नल-नील की कथा [कहानी]

लाखो साल पहले त्रेता युग मे एक मुनीन्द्र नाम के ऋषि  थे। वो अपने आश्रम में रहते थे व घूम घूम कर लोगो को भगवान की कथा  सुनाते व भगति करने की सलाह देते। उनके आशीर्वाद से लोगो को बहुत से रोगों से छुटकारा मिलता व एक सुखपूर्ण जीवन का आधार मिलता। यहां तक कि श्रीरामचंद्र जी ,लंकापति रावण, हनुमान जी भी ऋषि मुनीन्द्र  जी के संपर्क में आये। व उनके अटके काम भी ऋषि मुनीन्द्र जी की कृपा से ही ठीक हुए। ऋषि मुनीन्द्र [Munndra Rishi] जी द्वारा नल व नील का भयंकर रोग सही करना। नल व नील नाम के दो भाई थे ।उनको एक भयंकर रोग था ।जिसके इलाज के लिए वो सब जगह गए लेकिन  कोई भी ठीक न कर सका। उनका रोग निवारण मुनीन्द्र ऋषि जी के आशीर्वाद से हुआ। दोनों भाई मुनीन्द्र ऋषि के आश्रम में रहने लगे और वहां आने वाले भगतो की सेवा करने लगे।उनके कपड़े बर्तन आदि नदी में ले जाकर धो लाते। दोनों भाई बहुत ही भोले भाले थे ।वे दोनों भाई नदी में कपड़ो को भिगो देते व बातें करने लग जाते। जब वो बातें करते तो कुछ कपड़े पानी मे बह जाते। इससे जिन लोगो के कपड़े गुम होते उन्हें बहुत परेशानी आती।उन्होंने यह शिकायत मुनीन्...

‘‘नामदेव जी के लिए कबीर साहेब जी ने मंदिर घुमाया’

शादी के गीत और मंदिर की घंटियां आकर्षित बहुत करती हैं। वही व्यक्ति इनसे बच सकता है जो तत्वज्ञान पर दृढ़ता से लगा हुआ हो। मंदिर में आरती चल रही थी। पंडितजन हाथों में घंटियाँ तथा खड़ताल लेकर बजा रहे थे। गाँव पुण्डरपुर में बिठ्ठल भगवान का मंदिर था। उसमें सुबह तथा शाम को आरती होती थी। उस समय छूआछात चरम पर थी। एक दिन नामदेव जी मंदिर के पास से बने रास्ते पर जा रहे थे। नामदेव जी को भी धुन चढ़ गई। उसने अपनी जूतियाँ हाथों में लीं और उनको एक-दूसरे से मारने लगा और मंदिर में पहुँच गया। पंडितों के बीच से भगवान बिठ्ठल जी की मूर्ति के सामने खड़ा हो गया। पंडितों ने देखा कि नामदेव ने जूतियाँ हाथ में ले रखी हैं और मंदिर में प्रवेश कर गया है। ऐसा करने से मंदिर अपवित्र हो गया है। भगवान बिठ्ठल रूष्ट हो गए तो अनर्थ हो जाएगा। (विचार कीजिए मूर्ति रूष्ट कैसे होगी) नामदेव जी को खीचकर (घसीटकर) मंदिर के पीछे डाल दिया गया। भक्ति का आलम यह था कि भक्त नामदेव जी पृथ्वी पर गिरे-गिरे भी जूतियाँ पीट रहे थे और आरती गा रहे थे। उसी क्षण मंदिर का मुख नामदेव जी की ओर घूम गया। पंडितजन मंदिर के पीछे खड़े-खड़े घंटियाँ बजा रहे...

‘‘रंका-बंका की झोपड़ी में जब लगी आग ’’

बेटी अवंका झोंपड़ी के बाहर एक चारपाई पर बैठी थी। अचानक झोंपड़ी में आग लग गई। सर्व सामान जलकर राख हो गया। रंका तथा बंका दोनों पति-पत्नी गुरू जी (कबीर साहेब जी) के सत्संग में गए हुए थे जो कुछ दूरी पर किसी भक्त के घर पर चल रहा था।  अवंका दौड़ी-दौड़ी सत्संग में गई। गुरू जी प्रवचन कर रहे थे। अवंका ने कहा कि माँ! झोंपड़ी में आग लग गई। सब जलकर राख हो गया। सब श्रोताओं का ध्यान अवंका की बातों की ओर गया। माँ बंका जी ने पूछा कि बेटी क्या बचा है? अवंका ने बताया कि केवल एक खटिया बची है जिस पर मैं बाहर बैठी थी। माँ बंका ने कहा कि बेटी जा, उस खाट को भी उसी आग में डाल दे और आकर सत्संग सुन ले। कुछ जलने को रहेगा ही नहीं तो सत्संग में भंग ही नहीं पड़ेगा। बेटी सत्संग हमारा धन है। यदि यह जल गया तो अपना सर्वनाश हो जाएगा। लड़की वापिस गई और उस चारपाई को उठाया और उसी झोंपड़ी की आग में डालकर आ गई और सत्संग में बैठ गई। सत्संग के पश्चात् अपने ठिकाने पर गए। वहाँ एक वृक्ष था। उसके नीचे वह सामान जो जला नहीं था जैसे बर्तन, घड़ा आदि-आदि पड़े थे। उस वृक्ष के नीचे बैठकर भजन करने लगे। उनको पता नहीं चला कि कब सो गय...

🌴🌴तत्वज्ञान🌴🌴

प्रश्न :- कर्म कितने प्रकार के हैं ?* उत्तर :- कर्म दो प्रकार के हैं। एक शुभ कर्म, दूसरा अशुभ यानि एक पुण्य और दूसरा पाप कर्म कहा जाता है। *1. पुण्य कर्म :-* शास्त्र विधि अनुसार भक्ति कर्म, दान, परमार्थ, भूखों को भोजन देना,असहाय की हर संभव सहायता, दया भाव रखना, अपने से दुर्बल से भी मित्र जैसा व्यवहार करना। परनारी को माता तथा बहन के भाव से देखना, सत्य बोलना, अहिंसा में विश्वास रखना,साधु-संतों, भक्तों की सेवा व सम्मान करना, माता-पिता तथा वृद्धों की सेवा करना आदि-आदि शुभ यानि पुण्य कर्म हैं। *2. पाप कर्म :-* शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करके भक्ति कर्म करना, चोरी , परस्त्री से बलात्कार, परस्त्री को दोष दृष्टि से देखना, माँस-मदिरा, नशीली वस्तुओं का सेवन, रिश्वत लेना, डाके मारना, हिंसा करना आदि-आदि अशुभ कर्म हैं यानि पाप कर्म हैं। *प्रश्न :- कर्म बंधन कैसे बनता है ?* उत्तर :- काल ब्रह्म ने जीव के कर्मों को तीन प्रकार से बाँटा है। *1.संचित कर्म*  *2. प्रारब्ध कर्म*  *3. क्रियावान कर्म।* *1. संचित कर्म :-* संचित कर्म वे पाप तथा पुण्य कर्म हैं जो जीव ने...

"जब राजा वाजीद का ऊंट चलते-चलते मर गया"

कथा :- एक वाजीद नाम का मुसलमान राजा था। एक समय अपनी राजधानी से अन्य शहर में जा रहा था। रेगिस्तानी क्षेत्र था। पहले ऊँटों पर चलते थे। सैंकड़ों अंगरक्षक भी साथ थे। मंत्री तथा प्रधानमंत्री, धर्मगुरू तथा वैद्य भी साथ चले। सब ऊँटों पर चढ़कर चल रहे थे। आगे पर्वतों के बीच से घाटी से होकर जा रहे थे। ऊँट एक के पीछे एक चल रहे थे। वह घाटी इतनी तंग थी कि एक समय में वहां एक ऊँट ही चल सकता था। उस घाटी में एक ऊँट गिर गया और गिरते ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। राजा का काफिला रूक गया क्योंकि बराबर से निकलने का स्थान नहीं था। आगे ऊँटों की लंबी पंक्ति थी। घाटी की लंबाई भी तीन-चार किलोमीटर थी। यह घटना बीच में हो गई। राजा ने कहा कि मेरी आज्ञा बिना काफिला किसने रूकवाया है? उसे बुलाओ। मंत्रीगण गए और आकर कारण बताया। राजा वाजीद ने कहा कि मुझे दिखाओ, मेरी आज्ञा के बिना ऊँट कैसे मर गया और कैसे लेट गया? राजा ने देखा कि आँख ठीक, नाक ठीक, कान, टाँग, दुम, गर्दन सब ठीक है। फिर कहाँ से मर गया? धर्म पीर (गुरू) ने बताया कि हे राजन! जिस प्राणी का जितना समय परमात्मा ने निर्धारित कर रखा है, वह उतने समय तक ही संसार में रहता...

श्रीमद्भगवदगीता विधि साधना

पूर्ण परमात्मा प्राप्ति के लिये शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म एवं साधना ऊँ तत् सत् सांकेतिक मन्त्र को शास्त्रविधि अनुसार तत्वदर्शी संत से प्राप्त करने का  श्रीमद्भगवदगीता में स्पष्ट  निर्देश योग अर्थात् वास्तविक भक्ति योगस्थः, कुरु, कर्माणि, संगम्, त्यक्त्वा, धनञ्जय, सिद्धयसिद्धयोः, समः, भूत्वा, समत्वम्, योगः, उच्यते ।।2.48।। अनुवाद: (धनञ्जय) हे धनञ्जय! (संगम्) तू आसक्तिको (त्यक्त्वा) त्यागकर तथा (सिद्धयसिद्धयोः) सिद्धि और असिद्धिमें (समः) समान बुद्धिवाला (भूत्वा) होकर (योगस्थः) शास्त्रनुकूल भक्ति योगमें स्थित हुआ (कर्माणि) शास्त्र विधि अनुसार भक्ति कर्तव्यकर्मोंको (कुरु) कर (समत्वम्) एक रूप ही (योगः) योग अर्थात् वास्तविक भक्ति (उच्यते) कहलाता है। (2.48) बुद्धियुक्त भक्ति मार्ग ही कुशलता है बुद्धियुक्तः, जहाति, इह, उभे, सुकृतदुष्कृते, तस्मात् योगाय, युज्यस्व, योगः, कर्मसु, कौशलम् ।।2.50।। अनुवाद: (बुद्धियुक्तः) समबुद्धियुक्त अर्थात् तत्वदर्शी संत द्वारा बताया वास्तविक एक रूप शास्त्र अनुकूल भक्ति मार्ग पर लगा साधक पुरुष (सुकृतदुष्कृते) अच्छे कर्म जैसे मनमानी पूजाऐं जो ...